Archive for August, 2007

क्रोध का सार्थक उपयोग

August 22, 2007
    “मै इतने ग़ुस्से मे हुँ कि मै ठीक तरीके से देख भी नही सकता” या “मै इतने गुस्से मे था कि मै भी नही जानता था कि क्या करने जा रहा हुँ” ये दोनो ही कथन सच हैं। अगर आप स्पष्टता से नही सोच पा रहे हैं, समझदारीपूर्ण निर्णय नही ले पा रहे हैं, तो सबसे बेहतर उपाय यह है कि आप कुछ न करें थोड़ा समय बीत जाने दें। तब तक जब तक आप अपने विचारों को शांत न कर लें, तब तक न तो कुछ करें, न कुछ कहें, क्योंकि गुस्से मे आप जो कहते या करते हैं, बाद मे आप उसी पर सबसे ज़्यादा पछताते हैं। याद रखें आपके साथ जो होता है, उस पर तो आपका नियंत्रण नही होता, परंतु प्रतिक्रिया पर आपका नियंत्रण अवश्य होता है। केवल आकस्मिक प्रतिक्रिया न करें, बल्कि आगे निकल कर सोचें, ज़्यादा बड़े लक्ष्य को ध्यान मे रखें।
    आप अपने क्रोध का सार्थक उपयोग कर सकते हैं। अपना ध्यान बड़े लक्ष्य पर केन्द्रित करें, छोटी छोटी बातों से ध्यान को हटाए, असल मे आपका मक़सद क्या है आप क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
    लेकिन दुसरी तरफ, क्रोध से पैदा होने वाली शक्ति का संग्रह करें, ताकि “मै आपको दिखा दुँगा” वाला नज़रिया विकसित हो सके। जब आप पर संकट आए, तो यह बात न भूलें। उस घटना को न भूलें, जिसकी वजह से गुस्सा आया था। उस पल को संजोकर रख लें, उस भावना को याद करें और उसका प्रयोग प्रेरक औज़ार के रूप मे करते रहें।
    क्रोध को समय समय पर फिर से जगाया जा सकता है। इसकी मदद से आप सभी चुनौतियों को जीत सकते हैं, दिग्गजों को हरा सकते हैं और असम्भव स्थितियों को पार कर सकते हैं। अपने क्रोध को याद रखें और यह भी याद रखें कि आपको कैसा लगा था। इसका प्रयोग बार बार करके ख़ुद को शक्ति प्रदान करते रहें। क्रोध का दोहन करें, सिर्फ बदला लेने के लिए नही, बल्कि आगे निकलने के लिए। याद रखें ज़बर्दस्त सफलता ही सबसे अच्छा प्रतिशोध है।

सफलता के रास्ते की रुकावट कहीं आप ख़ुद ही तो नही

August 13, 2007
  • सफलता का पहला नियम या सबसे महत्वपूर्ण सूत्र ‘ख़ुद को न हराएं’ । हो सकता है आप ही स्वयम के सबसे बड़े दुश्मन हों। आत्म विजय पहली और सर्वश्रेष्ठ विजय है । व्यक्ति अपनी सभी महत्वपूर्ण लड़ाईयाँ अपने भीतर लड़ता है। अक्सर स्थिति बदलने की ज़रूरत नही होती। इसके बजाए ख़ुद को बदलने की ज़रूरत होती है। सिर्फ आप ही है जो ख़ुद को रोके हुए हैं, सिर्फ आप ही अपनी सफलता की राह मे बाधा बने हुए हुए है और सिर्फ आप ही ख़ुद की मदद कर सकते हैं। आपको रोकने वाला कोई और नही, बल्कि आप ख़ुद हैं।
    जब आप अपनी सफलता की राह मे बाधा बन कर खड़े होंगे, तो आपकी आशाएँ हमेशा अस्पष्ट होंगी और आपके डर बहुत स्पष्ट होंगे। एसी स्थिति मे अपने अंदर के आलोचक को मुह तोड़ जवाब दें और उसका मुह बंद कर दें।

  • Hello world!

    August 13, 2007

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